कुछ महत्वपूर्ण मंत्र और विधि
(1) व्यापार वृद्धि हेतु –
मन्त्र :
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीमेव कुरु-कुरु वांछितमेव ह्रीं ह्रीं नम: ।
यदि व्यापार में बार-बार घाटा हो रहा हो । व्यापार बंद करने की स्थिति आ गई हो । तो इसके प्रयोग से निश्चित लाभ होगा ।
विधि :
श्री गणेश-लक्ष्मी जी की मूर्ति के पास सात-गोमती चक्र व एक सियार सींगि (प्राण प्रतिष्ठित होनी चाहिये) रखकर इस मंत्र का स्फटिक की माला से एक माला (१०८ बार ) जाप नित्य प्रात: ४१ दिनों तक करें ।
(2) ऋण मुक्ति धनवृद्धि हेतु-
(2) ऋण मुक्ति धनवृद्धि हेतु-
मन्त्र : ॐ श्रीं हीम श्रीं महालक्ष्म्यै नम: ।
मम अलक्ष्मीं नाशयनाशय, मामृणोतीर्ण कुरु-कुरु सम्पदांवर्धय-वधर्य स्वाहा ।
विधि :
एक दक्षिण मुखी शंख में कुछ जल भरकर भगवान के पास रखें । २५० की संख्या में नित्य मंत्र का जाप करें तथा जाप के पश्चात् गोठा (छिपड़ी, गाय के गोबड़ की) को प्रज्ज्वलित कर इसी मंत्र से गाय के घी के द्वारा सात आहुती दें । शंख में जो जल है उसे घर में तथा व्यापार स्थल के प्रत्येक कोणों में छिड़क दें ।
ध्यान रहे जल इसप्रकार डाले की जल पर पैर न पड़े तथा जल गंदे स्थान में न डालें ।
इस विधि से ४५ दिनों तक लगातार करें । इसके बाद नित्य मात्र एक माला मंत्र का जाप करते रहे । शीघ्र सफलता मिलेगी ।
(3) घर से अलक्ष्मी दूर करने का लघु प्रयोग-
(3) घर से अलक्ष्मी दूर करने का लघु प्रयोग-
मन्त्र :
ॐ ह्रीम् श्रीम् क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि मामाभिमतमन्नं देहि-देहि अन्नपूर्णों स्वाहा ।
विधि :
जब रविवार या गुरुवार को पुष्प नक्षत्र हो या नवरात्र में अष्टमी के दिन या दीपावली की रात्रि या पूर्व में तलाये गये (यंत्र मंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण काल में से ) किसी दिन से इस मंत्र की एक माला रुद्राक्ष माला से नित्य जाप करें । जाप से पूर्व भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान करें तथा भगवान शिव का ध्यान कर नीचे दिये ध्यान मंत्र से माता अन्नपूर्णा का ध्यान करें ।
ध्यानमंत्र :
ॐ तप्त-स्वर्णनिभांशशांक-मुकुटा रत्नप्रभा-भासुरीं ।
नानावस्त्र-विभूषितां त्रिनयनां गौरी-रमाभ्यं युताम् ।
दर्वी-हाटक-भाजनं च दधतीं रम्योच्चपीनस्तनीम् ।
नित्यं तां शिवमाकलय्य मुदितां ध्याये अन्नपूर्णश्वरीम् ॥
ध्यान के पश्चात जाप करें ।
नोट : यदि इसी मंत्र का जाप दुकान में गल्ले में सात काली गुंजा के दाने रखकर शुद्ध आसन, (कम्बल आसन, या साफ जाजीम आदि ) पर बैठकर किया जाए तो व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ महसूस होने गेगा ।
(4) विवाह बाधा निवारण –
यदि लड़के या लड़की की शादी में अड़चन आ रही हो तो रविवार को छोड़कर सप्ताह में छह दिन प्रात:काल सूर्योदय से आधा घंटा पहले या सूर्योदय के समय कच्ची लस्सी लेकर पीपल वृक्ष की जड़ में सीचें । जल्द ही विवाह का योग बनेगा । इस प्रयोग को सवा दो महीने करें ।एवं कन्या अशुद्धि की अवस्था में छह दिनों तक बंद कर दें ।
(5) यदि किसी को बार-बार गर्भपात होता हो तो इसे करें –
गर्भाधान होने पर दूसरा मास पूर्ण होते ही किसी विद्वान पंडित से सम्पर्क कर पुंसवन संस्कार करवा लें तथा इसके बाद एक छोटी-सी चाँदी की बांसुरी लेकर पति एवं पत्नी दोनों जाकर श्रीराधा कृष्ण मंदिर में चढ़ा दें ।
मातृसुख हेतु :-
यदि मदार की जड़ को चाँदी की ताबीज में रखकर काले धागे में स्त्री उसे कमर पर बांधे तो शीघ्र संतान प्राप्ति का योग बनता है ।
कर्णपीड़ा से मुक्ति एवं श्रवण शक्ति में वृद्धि –
पीपल के कोमल हरे-पतों को लाकर-रस निकालकर कान में दो बूंद नित्य डालने से शीघ्र लाभ होता है ।
पढ़ाई में कमजोर छात्रों की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध निर्बल होता है।
दरअसल, मन-मस्तिष्क का कारक चंद्रमा है और जब यह दुर्बल हो या पथभ्रष्ट चंचल हो जाए तो मन-मस्तिष्क में स्थिरता या संतुलन ठीक नहीं रहता। इसी तरह बुध की प्रतिकूलता की वजह से तर्क व कुशाग्रता में कमी आती है।
स्मरण रहे कि हर छात्र को मेहनत के साथ-साथ अच्छी सफलता के लिए देवी सरस्वती की आराधना भी करनी चाहिए।
ध्यान रहे कि सरस्वती आराधना होती तो बहुत आसान है लेकिन इसे गुरुवार से प्रारंभ कर गुरुवार को ही संपूर्ण करना पड़ता है। शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि इस साधना के लिए लाभदायक है। चैत्र माह की शुक्ल पंचमी में यह साधना तुरंत फल देती है।
खास बातें रखें ध्यान : - किसी भी छात्र या छात्रा को यह साधना स्वयं ही करनी चाहिए, अगर छात्र यह पूजन न कर सकें तो माता द्वारा इस साधना से सफलता मिलती है। सरस्वती पूजन करने वाले को पीले वस्त्र ही पहनने चाहिए।
पूजन सामग्री : - महासरस्वती का यंत्र या देवी सरस्वती का चित्र, आठ छोटे नारियल, सफेद चंदन, अक्षत, श्वेत पुष्प, सुगंधित धूप व अगरबत्ती व घी का दीपक।
कैसे करें सरस्वती पूजन :- गुरुवार को सुबह स्नान इत्यादि करने के बाद पूजा प्रारंभ करें। गणेशजी का आह्वान कर तांबे की थाली में कुंमकुंम से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इस चिह्न के ऊपर, मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें। चित्र के समक्ष आठों नारियल रख दें। अब चित्र या यंत्र के ऊपर चंदन, पुष्प व अक्षत अर्पण कर धूप-दीप जलाकर देवी मां का आह्वान करें और स्फटिक या तुलसी की माला पर सरस्वती मंत्र 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' की पांच माला फेरें।
सायंकाल सूर्यास्त से पूर्व सभी सामग्री किसी नदी, तालाब या किसी जलाशय में विसर्जित कर दें। सफलता जरूर मिलेगी।
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